5. तब उसने मेरे सुनते हुए दूसरों से कहा, नगर में उनके पीछे पीछे चल कर मारते जाओ; किसी पर दया न करना और न कोमलता से काम करना।
6. बूढ़े, युवा, कुंवारी, बाल-बच्चे, स्त्रियां, सब को मार कर नाश करो, परन्तु जिस किसी मनुष्य के माथे पर वह चिन्ह हो, उसके निकट न जाना। और मेरे पवित्र स्थान ही से आरम्भ करो। और उन्होंने उन पुरनियों से आरम्भ किया जो भवन के साम्हने थे।
7. फिर उसने उन से कहा, भवन को अशुद्ध करो, और आंगनों को लोथों से भर दो। चलो, बाहर निकलो। तब वे निकल कर नगर में मारने लगे।
8. जब वे मार रहे थे, और मैं अकेला रह गया, तब मैं मुंह के बल गिरा और चिल्लाकर कहा, हाय प्रभु यहोवा! क्या तू अपनी जलजलाहट यरूशलेम पर भड़का कर इस्राएल के सब बचे हुओं को भी नाश करेगा?
9. तब उसने मुझ से कहा, इस्राएल और यहूदा के घरानों का अधर्म अत्यन्त ही अधिक है, यहां तक कि देश हत्या से और नगर अन्याय से भर गया है; क्योंकि वे कहते हें कि यहोवा ने पृथ्वी को त्याग दिया और यहोवा कुछ नहीं देखता।
10. इसलिये उन पर दया न होगी, न मैं कोमलता करूंगा, वरन उनकी चाल उन्हीं के सिर लौटा दूंगा।