10. उनके साम्हने के मुखों का रूप मनुष्य का सा था; और उन चारों के दाहिनी ओर के मुख सिंह के से, बाई ओर के मुख बैल के से थे, और चारों के पीछे के मुख उकाब पक्षी के से थे।
11. उनके चेहरे ऐसे थे। और उनके मुख और पंख ऊपर की ओर अलग अलग थे; हर एक जीवधारी के दो दो पंख थे, जो एक दूसरे के पंखों से मिले हुए थे, और दो दो पंखों से उनका शरीर ढंपा हुआ था।
12. और वे सीधे अपने अपने साम्हने ही चलते थे; जिधर आत्मा जाना चाहता था, वे उधर ही जाते थे, और चलते समय मुड़ते नहीं थे।
13. और जीवधारियों के रूप अंगारों और जलते हुए पलीतों के समान दिखाई देते थे, और वह आग जीवधारियों के बीच इधर उध्र चलती फिरती हुई बड़ा प्रकाश देती रही; और उस आग से बिजली निकलती थी।
14. और जीवधारियों का चलना-फिरना बिजली का सा था।
15. जब मैं जीवधारियों को देख ही रहा था, तो क्या देखा कि भूमि पर उनके पास चारों मुखों की गिनती के अनुसार, एक एक पहिया था।