25. वह बल और प्रताप का पहिरावा पहिने रहती है, और आने वाले काल के विषय पर हंसती है।
26. वह बुद्धि की बात बोलती है, और उस के वचन कृपा की शिक्षा के अनुसार होते हैं।
27. वह अपने घराने के चाल चलन को ध्यान से देखती है, और अपनी रोटी बिना परिश्रम नहीं खाती।
28. उसके पुत्र उठ उठकर उस को धन्य कहते हैं, उनका पति भी उठ कर उसकी ऐसी प्रशंसा करता है: