18. जब वे यूसुफ के घर को पहुंचाए गए तब वे आपस में डर कर कहने लगे, कि जो रूपया पहिली बार हमारे बोरों में फेर दिया गया था, उसी के कारण हम भीतर पहुंचाए गए हैं; जिस से कि वह पुरूष हम पर टूट पड़े, और हमें वश में करके अपने दास बनाए, और हमारे गदहों को भी छीन ले।
19. तब वे यूसुफ के घर के अधिकारी के निकट जा कर घर के द्वार पर इस प्रकार कहने लगे,
20. कि हे हमारे प्रभु, जब हम पहिली बार अन्न मोल लेने को आए थे,
21. तब हम ने सराय में पहुंचकर अपने बोरों को खोला, तो क्या देखा, कि एक एक जन का पूरा पूरा रूपया उसके बोरे के मुंह में रखा है; इसलिये हम उसको अपने साथ फिर लेते आए हैं।
22. और दूसरा रूपया भी भोजनवस्तु मोल लेने के लिये लाए हैं; हम नहीं जानते कि हमारा रूपया हमारे बोरों में किस ने रख दिया था।