2. बहुत सी बातें जो कही गई हैं, क्या उनका उत्तर देना न चाहिये? क्या बकवादी मनुष्य धमीं ठहराया जाए?
3. क्या तेरे बड़े बोल के कारण लोग चुप रहें? और जब तू ठट्ठा करता है, तो क्या कोई तुझे लज्जित न करे?
4. तू तो यह कहता है कि मेरा सिद्धान्त शुद्ध है और मैं ईश्वर की दृष्टि में पवित्र हूँ।
5. परन्तु भला हो, कि ईश्वर स्वयं बातें करें, और तेरे विरुद्ध मुंह खोले,
6. और तुझ पर बुद्धि की गुप्त बातें प्रगट करे, कि उनका मर्म तेरी बुद्धि से बढ़कर है। इसलिये जान ले, कि ईश्वर तेरे अधर्म में से बहुत कुछ भूल जाता है।
7. क्या तू ईश्वर का गूढ़ भेद पा सकता है? और क्या तू सर्वशक्तिमान का मर्म पूरी रीति से जांच सकता है?
8. वह आकाश सा ऊंचा है; तू क्या कर सकता है? वह अधोलोक से गहिरा है, तू कहां समझ सकता है?
9. उसकी माप पृथ्वी से भी लम्बी है और समुद्र से चौड़ी है।
10. जब ईश्वर बीच से गुजरकर बन्द कर दे और अदालत (कचहरी) में बुलाए, तो कौन उसको रोक सकता है।