12. तब यहोवा ने रात में उसको दर्शन दे कर उस से कहा, मैं ने तेरी प्रार्थना सुनी और इस स्थान को यज्ञ के भवन के लिये अपनाया है।
13. यदि मैं आकाश को ऐसा बन्द करूं, कि वर्षा न हो, वा टिडियों को देश उजाड़ने की आज्ञा दूं, वा अपनी प्रजा में मरी फैलाऊं,
14. तब यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन हो कर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी हो कर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुन कर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा।
15. अब से जो प्रार्थना इस स्थान में की जाएगी, उस पर मेरी आंखें खुली और मेरे कान लगे रहेंगे।