17. इसी से प्रेम हम में सिद्ध हुआ, कि हमें न्याय के दिन हियाव हो; क्योंकि जैसा वह है, वैसे ही संसार में हम भी हैं।
18. प्रेम में भय नहीं होता, वरन सिद्ध प्रेम भय को दूर कर देता है, क्योंकि भय से कष्ट होता है, और जो भय करता है, वह प्रेम में सिद्ध नहीं हुआ।
19. हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया।
20. यदि कोई कहे, कि मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूं; और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा है: क्योंकि जो अपने भाई से, जिस उस ने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्वर से भी जिसे उस ने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता।
21. और उस से हमें यह आज्ञा मिली है, कि जो कोई अपने परमेश्वर से प्रेम रखता है, वह अपने भाई से भी प्रेम रखे॥